बूढा पीपल कुछ और बूढा हो चला था. जिसकी छाव के तले गर्मी की छुट्टिय बीता करती थी, जिसके पत्ते आँगन मैं कचरा फैला कर रोज अम्मा की डांट खाया करते थे और फिर किसी शरारती बच्चे की तरह अपनी गलती से अनजान हो जाया करते थे, वही पीपल अब कई आँखों मैं खटकता था.
मुह्हल्ले के कई बच्चे जो बचपने मैं पीपल को पीपल ताऊ , पीपल चाचा और पीपल मामा कह के बुलाते थे, वो सभी अब बड़े हो चुके थे. और उनकी मह्त्व्कंशाओ के आगे पीपल भी बोना नज़र आ रहा था.
विचारो की धार पीपल पर आरी की तरह चल रही थी, कई पक्षी विचलित प्रतीत हो रहे थे, कई जानवरों ने भी इसे एक दंडनीय अपराध करार दिया था, नहीं विचलित था तो आदमी का मन जो पीपल को अपनी तररकी मैं बाधा मान चूका था. कभी सभी की आँखों का तारा रहा पीपल अब उन्ही आँखों मैं खटक रहा था. पीपल के उप्पर एक शौपिंग माल नामक काल मंडरा रहा था.
इतनी झिड़कियो एवं तानो को झेलते हुए एक दिन पीपल ने अपनी जीवन लीला ही समाप्त कर ली. कल रात की मुसलाधार बारिश मैं कई टीन तप्परो के साथ साथ पीपल भी गिर पड़ा. ना किसी आरी की जर्रोरत पड़ी और ना कुल्हाड़ी की. जो काम दशको की गर्मी, सर्दी और बारिश न कर सकी, वो अपनों के तानो एवं चुभती हुई निगाहों ने कर दिया. अपने बच्चो के सपनो के लिए पीपल चाचा ने अपना जाना ही ठीक समझा.
आपका अपना
सिद्धार्थ
Wednesday, 11 August 2010
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