Tuesday, 23 November 2010

प्रजातंत्र

सुबह उठते ही दैनिक समाचारों से रूबरू होने की आदत सभी को होती है. कुछ लोग इसके लिए अख़बार की बाट जोहते है तो कुछ न्यूज़ चेनल्स पर भरोसा करते है. आज का दिन और दिनों से कुछ अलग था क्यूंकि आज बिहार विधानसभा के चुनावो के नतीजे आने वाले थे.
जैसा की अनुमानित था, नितीश कुमार एवं भाजपा गठबंधन ने सत्ता काबिज कर ली. हालाकि ये कोई चौकाने वाली बात नहीं थी. चुनाव में किसी की हार एवं किस्सी की जीत होती ही है, कुछ दिग्भ्रमित लोग त्रिशंकु सभा के पक्ष में भी रहते है.
लेकिन आज की बात विशेष बनाने में एक १० से १२ वर्षीय बालक का योगदान रहा. हुआ यु की घर में रद्दी जमा हो चुकी थी एवं हमसे लाख गुहार लगाने के बाद भी जब हम एक रद्दी वाले को नहीं ढूँढ पाए तब हमारी धर्मपत्नी ही एक रद्दी वाले का पता निकाल लायी. सुबह के करीब ९ बजे थे, बिहार में हुए घमासान को सभी न्यूज़ चेनल्स चटखारे ले ले कर परोस रहे थे और यहाँ ये गरीब, इन सब बातो से बेखबर हो, रद्दी तौल रहा था. हमे उसके बोलचाल से अंदाजा हो ही चूका था लेकिन फिर भी पूछ बैठे, क्यों भई बिहार से हो क्या? वो हाँ बोल कर हमारी आँखों में अपनापन ढूँढने की कोशिश सी करने लगा. हमने उसे टीवी पर चल रहे प्रोग्राम की और इंगित करते हुए कहा, ये पता है क्या चल रहा है, उसने इस प्रश्न की अपेक्षा हमसे नहीं की थी लेकिन फिर भी थोड़ी देर टीवी पर देखने के बाद अपनी मुंडी हिला कर साफ़ इंकार कर दिया और बोला, नाही भैया, हमे नाही पता जे क्या है.
अपनी आज की रोटी, आज का खाना और आज का आशियाना जैसे महतवपूर्ण सवालों में उलझे हुए उस बालक के समक्ष देश से जुडी ये अहम् खबरें भी बौनी नज़र आई, हमने एक गैर जिम्मेदार नागरिक की तरह ठंडी सांस भरी और उसे उसका हिसाब किताब कर रवाना किया.
विश्व के सबसे बड़े प्रजातंत्र में बच्चो की शिक्षा एवं उनके भविष्य जैसे मुद्दों की ऐसी अवहेलना पर हम एक बार फिर असहाय नज़र आये.

सिद्धार्थ