सयानो की इस महफ़िल में एक बावरा घुस बैठा,
जब बात लफ्जों की चली तो बेबस हो चुप बैठा,
सब ने जब झिड़क दिया उसको, अपने आप में सिमट बैठा,
सयानो की इस महफ़िल में एक बावरा घुस बैठा,
सब ने मान लिया तौहीन इसे शम्मा की,
जो ये परवाना उस पर जरा मचल बैठा,
सयानो की इस महफ़िल में एक बावरा घुस बैठा,कुछ टीस थी बावरे के कलेजे में,
कई सालो से झेल रहा था अकेले में,
सयानो इस इस महफ़िल में गुस्ताखी वो कर बैठा,
बावरे ने कहा, बात इंसानों सी करो, हैवानो सी नहीं,
राम को दिल में रखो, किताबो में नहीं,
अल्लाह को अपनों में ढूँढो, अजानो में नहीं,
नफरत जला देती है मुह्हब्बत की फसल,
कुछ तो निशानी रखो की है हम इंसानों की नस्ल,
लहू उतर आया सयानों की आँखों में,
खीच गयी सभी तलवारें जो रखी थी मयानो में,
कुछ लपक कर पहुचे, बावरे को चीरने,
कॉपते हुए अंतिम साँसे गिनी उस वीर ने,
सबक बावरे को सिखाया गया,
उसकी बगावत को उसी महफ़िल में दबाया गया,
अपनी शक्ति के मद में सयानों ने सिंहनाद किया,
बावरे के शोक में सबने मदिरा पान किया,
महफ़िल बढ चली थी अपने अंत की और,
बाहर कई बावरे खड़े थे थामे उम्मीद की डोर.
आपका अपना,
सिद्धार्थ