मेरे बचपन से ही मुझे लघु कथाएँ पढने का काफ़ी शौक रहा है। हर सामान्य बालक की तरह बचपन में चम्पक, चंदामामा , नंदन, बालहंस, सुमन सौरभ एवं विभिन्न कॉमिक्स पढ़कर ही अपनी गर्मी की छुट्टियाँ व्यतीत किया करता था। अंग्रेजी भाषा की और रुझान और उसके महत्व को समझना मेरी कल्पना से परे हुआ करता था। इसलिए आज सैंकडो अंग्रेजी उपन्यास पड़ने एवं समझने के पश्चात् भी जिस अनुराग की अनुभूति अपनी मातृभाषा के प्रति होती है, वो अंग्रेजी के प्रति नही होती।
आज वर्षो अंग्रेजी भाषा पढने और बोलने के बाद, संभवतः हिन्दी व्याकरण एवं भाषा प्रवाह में कई त्रुटियां सम्मिल्लित हो चुकी है परन्तु अपनी भाषा के प्रति प्रेम में कोई कमी नही हुई है। इस मातृभाषा प्रेम के लिए मेने अंग्रेजी भाषा का तिरस्कार कभी नही किया और कोतुहोल के साथ अंग्रेजी भाषा की सुन्दरता को सराहा है।
अपने इस भाषा प्रेम के चलते मुझे काफ़ी लेखक एवं उनकी प्रसिद्द रचनाओ को अभी तक पढ़ लेना चाहिए था लेकिन ऐसा नही हुआ। कभी मार्गदर्शन तो कभी ध्यान की कमी के चलते, में अपनी रूचि को ज्यादा समय नही दे पाया।
कुछ दिनों पहले एक मित्र के ब्लॉग पर गोगोल की रचना ओवेरकोट के बारे में समीक्षा पढ़ी और इस कहानी को पढने की इच्छा जागृत हुई। इस कहानी को रूसी साहित्य में एक विशेष स्थान प्राप्त है। इस कहानी के नायक "एकाकी अकाकिएविच" को एक कुशल लिपिक परन्तु असफल सामाजिक प्राणी के रूप मेंप्रस्तुत किया है। वह अपने जीवन में सिमित संभावनाओ से समझौता कर चुका था। वह ज्यादा पाने की चाह में नही था और किस्सी भी तरह के बदलाव से बचने की हर सम्भव कोशिश करता था। यहाँ तक की जब सर्दी में उसे नए ओवेरकोट की आवशयकता हुई तो उसने कई बार पुराने कोट की मरम्मत पर जोर दिया लेकिन जब दरजी ने उसकी हर दरख्वास्त को नकार दिया तब मन मार के उसने नए कोट के विषय में सोचना शुरू किया।
लेखक ने बड़ी ही कुशलता से दर्शाया है की नीरस व्यक्ति के जीवन में भी एक ध्येय हो तो वो उसे पाने की कोशिश करता है और सफलता मिलने पर उसे एक परम सुख की प्राप्ति होती है और हम सब के जीवन में भी ऐसे ही कई मौके आते है जब हमारी खुशी की कोई सीमा नही होती, और वो खुशी हमसे छीन ली जाए तो जीवन में एक शुन्य रह जाता है।
कहानी में ओवेरकोट तैयार होने पर जब नायक उसे पहन के अपने कार्यालय में जाता है तो उसे एक विशेष सम्मान की दृष्टी से देखा जाता है। इस प्रकार का सम्मान उसे कभी नही मिला था और समाज ने उसे हमेशा तिरस्कार की दृष्टी से ही देखा था। इस सम्मान की वजह ओवेरकोट को मान के नायक फूला नही समाता और जब उससे उसका ओवेरकोट छीन लिया जाता है और वरिष्ठ अधिकारियो द्वारा उसका अपमान किया जाता है तो वो इस सदमे को झेल नही पाता और दम तोड़ देता है।
इस प्रथम रचना को पढने के बाद गोगोल एक उदास लेखक प्रतीत होता लेकिन उसकी इस रचना ने मुझमे एक जिज्ञासा उत्पन्न कर दी है उसकी बाकी रचनाये पढने के लिए।
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गोगोल बहुत बेहतरीन रचनाकार हैं। आप उन की लंबी कहानी 'तस्वीर' और 'नाक'अवश्य पढ़िए। यह कहानी आप के श्रेष्ठतम आधुनिक कहानी से भी आधुनिक लगेगी
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