Saturday 22 December 2012

chota sa purja

में एक अदना से पुर्जा हूँ, इस कारखाने का,
जहाँ मुझे बिठाया गया, उसी जगह पर घिसता चला गया,

रोज घिसा , मिटने की हद तक घिसा,
कभी उठा कर बहार फेक दिए जाने के डर से घिसा, तो कभी अपनों की जरूरतों के लिए घिसा।

स्वाभाविक था की घिसते रहना कभी मेरा स्वाभाव समझ लिया गया,
 तो भी मेरा जूनून समझ लिया गया।

अपने आस पास के वातावरण से में कभी अनभिज्ञ नहीं रहा,
हर 3, 4 या फिर अमूमन 5 सालो में मेने, पूरे कारखाने के मालिको को हिला डाला।

फिर मेरे कारखाने के मालिको ने उसका भी उपाय ढूँढ निकल,
और हर 5 सालो में एक बार जादू दिखाने की मेरी इस शक्ति को भी शीण कर दल।

इस सब पर भी बाकी पुरजो ने मुझे ही कोस, में संकोच और शर्मिदगी में थोडा और घिस गया,
फिर मुझे घिसने के लिए अयोग्य करार कर दिया गया, और कभी जल, तो कभी दफना दिया गया।

में खुश हुआ की चलो अब ये अनवरत सिलसिला तो टूटा, अब नहीं घिसुंगा, अब नहीं घुतुँगा,
लेकिन ये क्या, मेरी जगह पर मेरे ही जैसा एक और पुर्जा बिठा दिया गया घिसने के लिए।

ऐ मुझ जैसे, छोटे से पुर्जे, आज और अभी से घिसना छोड़ दे और व्यर्थ में 5 सालो का इंतज़ार करना भी छोड़ दे।
जहा है , वही थम जा, न कुछ कह, न कुछ सुन, तुझ जैसे कई और पुर्जे भी रुके है अपनी अपनी जगहों पर।
 कारखाने में कुछ हलचल है, कही अफरा तफरी है तो कही मालिको की बौखलाहट है।

कार्य मुश्किल है आसमान चूने जितना, लेकिन तुझे किसने रोक है तबियत से पत्थर उछालने स।





 

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