Thursday, 23 September 2010

और पुल टूट गया

जैसे तैसे तो बना था, कई फाईलो का सहारा लेकर तना था.
अपने भाग्य पर इठला रहा था और अभी अभी बनने की ख़ुशी में इतरा रहा था.

बारिश का एक छीटा पुल को चिढ़ा गया, सौ टन के जंगले को हिला गया,
पुल ने अफसरों की नीयत को टटोला, फिर कापते शब्दों में बोला.

अपनी थाली में से मुझे भी कुछ तो खिलाते, सीमेंट न सही, कम से कम रेट तो अच्छी क्वालिटी की मिलाते,
दाढ़ी खुजाते अफसर बोले, हमसे कुछ बचता तो तुझे भी पिलाते.

खिसयाना सा होकर पुल ललकारा, अरे नासपीटो कुछ तो शर्म करते,
ज्यादा नहीं तो कम से कम एखाद साल का तो इन्तेजार करते.

देश की इज्जत लूट ली और दुनिया को जाता दिया,
अपनी कलुषित इच्छा की चलते, देश को नंगा करके बता दिया.

शान से तना हुआ पुल असमंजस में झूल गया,
और एक रात की बारिश में पुल का संबल टूट गया.

4 comments:

  1. Bhai kasam achha likhne lage ho

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  2. Bas bardasht ke bahar ho jaata hai to ghasit dete hai.

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  3. Well written !
    I had added a post related to CWG mess too.

    http://whenlifespeaks2u.blogspot.com/2010/09/if-you-really-feel-you-can-help-find.html

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