Sunday 12 February 2012

कायदों में बंधी ममता

कभी माँ की ममता तो कभी ममता भरी माँ को ही दोषी बना दिया,
कायदों में बाँध के करो प्यार, ये है कलयुग में खलीफाओं की पुकार.


बचपन को लडखडाता देख, अगर मातृत्व ने आगे बढ़ के सहारा दिया तो वो कहलाया हस्तक्षेप,
अगर नादानी की सर्दी में समझदारी का लिहाफ ओढाया तो वो कहलाया हस्तक्षेप,
अगर फ़िक्र की चाशनी में लपेट के चिंता का तमाचा लगाया तो  वो कहलाया हस्तक्षेप.


अगर अधपके सपनो पे अपना आज लुटाया तो वो कहलाया कर्त्तव्य,
अगर ज़रुरत ने अपना पेट काट कर, ऐशो-आराम को रोटी दी तो वो कहलाया कर्त्तव्य,
अगर ख्वाइशो ने मेहनत कर ईटे और गारा बटोरा तो वो भी कहलाया कर्तव्य,

अजब है ये दुनिया और अजब हो चले है इसके दस्तूर,
कच्ची मिटटी के घडो को जब से कुम्हार ने तपाना छोड़ दिया,
यूँ लगा जैसे प्यास ने हमारे गले से अपना नाता ही तोड़ लिया.

2 comments:

  1. बेहतरीन गीत...बधाई स्वीकारें

    नीरज

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