Friday 27 July 2012

Arvindji ke jazbe ko salam

मेरी दीन हीन सी सोच  है और कलम उठाने की क्षमता भी तनिक सीमित ही है, लेकिन अभिव्यक्ति की इच्छा जब हिलोर मारती है तो क्षमता की क्या बिस्सत जो हमे ऐसी गुस्ताखी करने से रोक पाए।
तो चाँद पंक्तियाँ इकिसवी सदी के देशभक्त के लिए जो एक बावरे की भाँती खुद को मिटाने पर तुला हुआ है, श्री अरविन्द केजरीवाल के ऐसे जज्बे को शत शत नमन


कितना कुछ है करने को, मुझे वक़्त नहीं है रोने को,
माना में थक गया हूँ अंधेरो में भटकते लेकिन सुबह है बस अब होने को,

धड़क रहा है दिल , सांस भी है बाकी अभी सीने में,
तू क्यों रोता है पगले, अभी बहुत मज़ा है जीने में,

तू झाँक जरा मेरी आँखों में, कुछ क्रोध कही सोया होगा,
कुछ खोद जमीन अपने आँगन की, कोई बीज कही बोया होगा

खूब बात चली, खूब वाह मिली, अब दिल भरता नहीं इन बातो से,
लिखने बैठा हूँ तो लिख ही लूँगा , अपनी किस्मत अब अपने हाथो से,


न झुका था तब , तो क्यों झुकूँगा अब, न रुका था तब तो क्यों रुकुंगा अब
वह वो खुश है रोज मेरी शिकस्त को देख कर,  यहाँ में खुश हु, खुद से एक जंग  जीत कर।










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