Sunday, 4 July 2010

शौपिंग माल

अभी कल की ही बात है, हमने अपने घर के पास बने माल में शौपिंग करने की गुस्ताखी कर डाली,
हमारी इस अस्वाभाविक हरकत से प्रस्सन हो,  हमारी धर्मपत्नी ने हमे शाबासी दे डाली.

माल पहुच कर हमने बटुआ टटोला तो वो भी ठंडी आहे भरता हुआ बोला,
हमेशा मुझे ही दोष देते हो, कभी लेडिस  पर्स की तरह मुझे भी भरो,
और वो भी न बन सके तो चलो वापिस घर ही चलो.

हमने बटुए से कहा औकात याद रहे, और जैसे हम सह रहे है लेडिस के नखरे सहे,
अनमना सा मुह लिए बटुआ अब चुप ही रहा और पूरे समय हमसे खफा ही रहा,

हम वहा अकेले नहीं थे,  शौपिंग बैगस लिए हमारी प्रजाति के कई और भी थे,
सभी अपने तरीके से समय व्यतीत कर रहे थे, कुछ फ़ोन पर तो कुछ लड़ने झगड़ने में व्यस्त थे.

पुरुष को नारी के पीछे चलते देख हमे नारी के उथान का सुकून भी था,
और मन में पत्नी के साथ समय बिताने का निर्मल आनंद भी था.

कुछ समय बाद पत्नी अपनी चिंता छोड़ हमारी तरफ हो ली,
और हमारे ड्रेससिंग सेंस पर एक चिंता भरी आवाज़ के साथ बोली.
हम तो हमेशा ही खरीदते है , आज आप भी कुछ लीजिये,
शर्ट तो रोज ही पहनते है, आज टी-शर्ट भी लीजिये.

अपने प्रति इसी चिंता के हम कायल है, और जनाब व्यंग को मारिये गोली,
हम तो अपनी पत्नी के प्यार में घायल है.

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