कहने को तो है सब अपने, पर कोई अपना साथ नहीं,मुश्किलों के इन लम्हों में , हाथो में कोई हाथ नहीं.
चिर निंद्रा में लीन हुए अब तो हमको सोने दो,
सदियों के है नाते टूटे, कुछ पल तो हमको रोने दो.
कल सब अपने रस्ते होंगे, नए जगत में हस्ते होंगे,
इस शण , इस पल में, तनहा हमको होने दो.
वक़्त का मरहम धीरे धीरे अपना काम तो करता है,
जख्मो के गड्डो को वो काफी धीरे भरता है.
सिर्फ जख्मो की क्या बात करे, यहाँ बातो से दिल जलता है,
रोने का दिल चाहे भी तो कन्धा कहाँ मिलता है.
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मंगलवार 3 अगस्त को आपकी रचना ... चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर ली गयी है .कृपया वहाँ आ कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ .... आभार
ReplyDeletehttp://charchamanch.blogspot.com/
कृपया कमेंट्स की सेटिंग से वर्ड वेरिफिकेशन हटा दें ...टिप्पणीकर्ता को आसानी होगी
अपनी मातृभाषा के इस प्रेमी को हमारा सलाम...बहुत अच्छी रचना है आपकी...वाह...लिखते रहें...
ReplyDeleteनीरज