हमारे देश में हर बरस आदमी का जन्मदिन आये न आये, बाढ़ का प्रकोप ज़रूर आता है. इस प्रकोप के चलते कईओं के घर उजड़ जाते है तो कईयों के बस भी जाते है, किस्सी के बच्चे नदी के पानी में बह कर समंदर में मिल जाते है तो किस्सी और के बच्चे उसी समंदर को पार कर जाते है. अब आगे बढ़ने के लिए किस्सी और के कंधे पर पाँव रखना तो लाजमी है और अगर वो कंधे किस्सी गरीब के हो तो इसमें आला अफसरों का तो कोई दोष नहीं.
माना की कभी कभी ज़रुरतमंदों की अनदेखी हो जाती है लेकिन सरकार पूरी तरह सजग है गरीबो को उनका हक दिलवाने के लिए. गरीबो के उत्थान के लिए विभिन्न योजनाये ठंडे बसते में संभाल के रखी हुई है. जैसे ही सरकार को पूर्ण बहुमत प्राप्त होगा, वो अपने सहोगी दलों से विनती करेगी की इन योजनायों को अतिशीघ्र लागू किया जाए.
अब आप कहेंगे पूर्ण बहुमत प्राप्त होने के बावजूद सहयोगी दलों से सहमती की क्या आवशकता. अब जनाब, बहुमत तो हाथ का मैल है, आज है , कल नहीं है. इसी कल की चिंता को ध्यान में रखते हुए सभी से सदभाव बनाये रखना ही सरकार का परम धर्म है.
कल अगर सरकार गरीबो को लेकर ज्यादा भावुक हो जाये और अपना संतुलन खो बैठे तो आप तो सरकार को ही दोष देंगे न की चुनाव का अतिरिक्त व्यय आपके सर मढ़ दिया इन गरीबो के हितेषियों ने. इसलिए सरकार हर कदम बहुत फूक फूक कर रखती है, इसीलिए सरकार की चाल भी धीमी हो जाती है.
इसलिए बाढ़, चुनाव और सरकार में बड़ा गहरा तालुक्क है. बाढ़ से बचने के लिए अगर उपाय समय रहते कर लिए गए तो बाढ़ पीड़ित कोष खाली रह जाएगा और हमारे देश का भविष्य बनाने वाले आला अफसरों के होनहार बच्चे विदेशो में अपने सपने साकार भी नहीं कर पायेंगे. अब गरीब तो फिर भी अपने सपनो से समझोता कर ले, लेकिन अमीर संतानों को क्यों इस अभाव का अहसास होने दिया जाए.
इसलिए बाढ़ हमारे समाज की प्रगति में एक अहम् भूमिका निभाती है और इसे महत्व को समझ पाना हम गरीबो की संकुचित सोच से परे है.
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