Monday 12 October 2009

दुनियादारी.. Part1

सर्दी का मौसम था, दोपहर का समय था, सूरज आसमान में हथखेलिया कर रहा था और ज़मीन पर रेंगते हुए इंसानीनुमा कीडो पर अपने प्यार रूपी धुप की चटकदार किरने बिखरे कर उनके अन्तर मन में उत्साह की भावनाए प्रफ्फुलित कर रहा था। रहीम अपने दोस्त राम के यहाँ खेलने जाने की तैयारी कर रहा था। अम्मी मेरे नए जूते कहा है। अब इतना छोटा भी नही था वो, आठवी कक्षा में पहुच चुका था। सो, अम्मी ने खीज कर कहा, कब तक नवाब की तरह रहेगा, ज़माने में इन चीजों की कोई जगह नही, एक दिन बाहर जायेगा तो सारी दुनियदारी समझ आ जायेगी। कहे देती हु, इस राम से दूर ही रहा कर तू, पता नही कब क्या फसाद करवाएगी तेरी ये दोस्ती।


अब अम्मी क्या समझे की रहीम शीर कोरमा छोड़ सकता है लेकिन राम के यहाँ खेलने जाना कतई नहीं। इधर राम के यहाँ भी कुछ ऐसा ही माहोल था। राम स्कूल से आते ही बसता फेक कर खेलने जाने की तैयारी कर रहा था। माँ जल्दी कुछ खाने को दे दे, रहीम आता ही होगा। हाँ, बड़ा लाटसाब है न तेरा रहीम। पता नही इसे उस लड़के में क्या दीखता है, इतने दोस्त है इसके ब्रह्मिण परिवार से, लेकिन इसका तो जी उस मुल्ले से ही मिलता है। बुदबुदाती हुई, राम की माँ उसके लिए रोटिया सेकने लगी।

दोनों पहली कक्षा से साथ पढ़ रहे थे लेकिन दोस्ती कोई चौथी कक्षा में हुई। राम अपनी स्कूल से घर लौट रहा था की कुछ लड़को ने रास्ते में रोक लिया। ये कोई आज की बात नही थी, आए दिन इसी तरह के लड़के राम को रोक कर परेशान किया करते थे। अब बित्ते भर का राम, गोरा चिट्टा और चुई मुई की तरह नाजुक, कोई जोर से चिल्ला दे तो मैदे जैसे गोरे गाल, लाल हो जाया करते थे। तो पूरे कसबे के आवारा लड़को के लिए वो एक निरीह लक्ष्य हुआ करता था जिसे मार कर वो ख़ुद का रॉब जमाया करते थे। राम उनसे लड़ना नही चाहता था पर उससे भी अहम् बात ये थी की राम लड़ना जानता ही नही था।

लेकिन उस दिन, उसी की कक्षा का एक हत्ता कट्टा लड़का, रहीम, दूर से ये तमाशा देख रहा था, उसका सहपाठी भी था लेकिन उसके सम्बन्ध राम से कुछ ख़ास मधुर नही थे। दोनों ही शिक्षको के पसंदीदा छात्रो में से एक थे। रहीम ने कभी हारना नही सिखा था लेकिन कक्षा में प्रथम स्थान को लेके राम और रहीम हमेशा टकराते रहते थे। रहीम पड़ने के साथ खेल कूद में तेज़ था तो राम भी पढ़ाई में अव्वल होने के साथ, अच्छा कलाकार था। कोई नाटक हो, भाषण हो या फ़िर कवितायेँ, राम सभी में पारंगत था। इसलिए इन दोनों का व्यक्तित्व घर्षण होना स्वाभाविक था। लेकिन आज जो रहीम की आखो के सामने हो रहा था वो उसके लिए इन सब व्यक्तिगत मुद्दों से ऊपर था। कहने को तो रहीम भी चौथी कक्षा का ही छात्र था लेकिन उसका डील डोल देख कर, सभी उसी आगे जाके पहेलवान बन्ने की नसीहत देते थे। वो राम को बचाने बीच में कूद पड़ा और उसके आते की नज़ारा बदल गया।

जो आवारा लड़के राम के बाल पकड़े उसे मट्टी में घसीट रहे थे, वो रहीम के आते ही अपनी सलामती की दुआ मांगे लगे। फ़िर भी किस्सी तरह वो पांचो हिम्मत करके रहीम पर टूट पड़े और उसे मारने लगे। रहीम ने काफ़ी देर तक संगर्ष किया लेकिन परिणाम उसके पक्ष में नही रहा। अब ये कोई फ़िल्म तो थी नही की वो अकेला उन पाँच पर भारी पड़ता। एक और चीज जो उन आवारा लड़को के पक्ष में थी और वो ये की ताकत और हिम्मत में भले ही रहीम उन पर भरी पड़ता लेकिन वो फ़िर भी एक इंसान था जिसमे इंसानियत कूट कूट कर भरी हुई थी जबकि इन आवारा लड़को को जानवर बनने के लिए सिर्फ़ एक पूँछ की जरूरत थी।

रहीम का ये हाल देख कर राम उसे अपनी साइकिल पर घर छोड़ने गया और रस्ते भर बस वो रोते जा रहा था। रहीम ने उसके कंधे पर हाथ रख के बोला की अगली बार उन पाँच में से दो तो नही आयेंगे और बाकी तीन को हम दोनों मिल कर संभाल ही लेंगे। जब राम कुछ न समझा तो रहीम ने अपने नाखुनो की और इशारा किया जिसमे कुछ खून लगा हुआ था और राम और रहीम दोनों ही उसकी इस असभ्य हरकत पर हंस पड़े। ॥ कर्म्शः

6 comments:

  1. बहुत अच्छा लेख है। ब्लाग जगत मैं स्वागतम्।

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  2. स्वागत और शुभकामनाये , अन्य ब्लॉगों को भी पढ़े और अपने सुन्दर विचारों से सराहें भी

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  3. Bahut khub kahi.nij bhasha man ke bhav chu deti hai.

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