Monday 12 October 2009

Dosti Aur Dushmani

किसी ने खूब लिखा है , जी किसी ने क्या अपने निदा साहब ने लिखा है और क्या लिखा है साहब!!
"वक़्त रूठा रहा बच्चे की तरह, राह में कोई खिलौना न मिला,
दोस्ती भी तो निभाई न गयी, दुश्मनी में भी अदावत ना हुई."

हलक में हाथ डालकर जैसे ज़बान ही निकल ली हो, काफी देर चुपचाप बैठे रहने के बाद हमने अपने बिछडे हुए दोस्त के प्रति दिखाई गयी पल भर की गैरजिम्मेदारी को भूलने की कोशिश की. हर पल एक दुसरे का ध्यान रखने वाली दो बैलो को जूरी सी थी हमारी दोस्ती. हम कुछ वक़्त के लिए अपनी दुनिया में मसरूफ क्या हुए, वो हमे पराया करके चला गया.
हीरा और मोती, इन दो बैलो की कहानी बचपन में पढ़ी थी लेकिन उस कहानी में भी अपनी दोस्ती को बचने का एक मौका तो उस बैल को भी मिला था और यहाँ तो बचपन का साथी ही बिना कुछ कहे इतना दर्द सह गया और हम बेखबर हुए अपनी ही दुनिया में डूबे रहे.
जाने वाले को कौन रोक सकता है साहब, वाह निदा साहब वाह, आप तो दिल को छु गए.दोस्ती और दुश्मनी में सूत भर का ही फर्क होता है, ये समझने में हमे ज़माने लग गए.

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