Thursday, 29 October 2009

माँ

हर आहट पर कान धरे, वो सोई सोई जगती माँ,

जाडे की मुश्किल सुबहो में , चाय पिलाने उठती माँ।

घर की कुंडी, फाटक, खिड़की, हर कोने में दिखती माँ,
हर मुश्किल को धक्का देके राह दिखाती, हंसती माँ।

बच्चो के चेहरों को चख कर, अपना पेट है भरती माँ,
उनकी ही चिंता को लेकर रातो में है खटती माँ।

चोट लगे जब बच्चो को तो मलहम लेप लगाती माँ,
बच्चो की खुशियों में छुप कर, अपनी चोट छुपाती माँ,

ईटें, गारा, पत्थर, चुना को स्वर्ग बनाती देवी माँ,
हर जीवन को अर्थ सिखाती हम सबकी वो प्यारी माँ,

घर के सुख को आगे रख कर, पीछे चलती निश्चल माँ,
धीरे धीरे मुरझाती और धीरे धीरे घिसती माँ।

छोटे छोटे पौधों को वृक्ष बनाती जननी माँ,
उड़ जाते सब पंछी बनकर, हाथ हिलाती, रोती माँ।

अध् सोई, पथराई आँखों से राह तकती बूढी माँ,
कच्चे मैले रस्ते पर, आस टिकाये बैठी माँ।

1 comment:

  1. BAHUT BAHUT MARMIK SACHMUCH MAA KA ASALI GUN BAYAAN KAR DIYAA AAPNE !!! GREAT!!!

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